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समानांतर सिनेमा का जादूगर श्याम बेनेगल

​​​​​श्याम बेनेगल..एक ऐसा डायरेक्टर…. जिनकी गिनती उन निर्देशकों में होती है, जिन्होंने अपनी फिल्मों से लोगों के दिलों में खास जगह बनाई

 

साल 1934 में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे श्याम बेनेगल समानांतर फिल्‍मों के लिए जाने जाते हैं. श्याम बेनेगल को समानांतर सिनेमा का जादूगर भी कहा जाता है.. हालांकि खुद बेनेगल इससे सहमत नहीं हैं… उनका मानना है.. कि  असल में किसी ने अपनी सहूलियत के लिए ‘समानांतर सिनेमा’ के शब्द की रचना की है. मतलब ये.. कि इसे इस रूप में दिखाया जाता है.. कि ये मुख्य सिनेमा से हटकर है. या फिर ये बताने की कोशिश होती है.. कि इस तरह की फ़िल्मों से मनोरंजन नहीं होता. तो मैं इस तरह के शब्दों से कभी सहमत नहीं रहा

 

आपको ये भी बता दें.. कि श्याम बेनेगल बॉलीवुड के मशहूर एक्टर और निर्देशक गुरुदत्त के भतीजे हैं…

 

गुरुदत्त के बारे में बेनेगल कहते हैं कि… अगर कामकाज की बात करें.. तो मैं उनसे प्रभावित तो नहीं था, लेकिन उनका व्यक्तित्व प्रेरित करने वाला ज़रूर था. जब मैंने 1950 में उनकी फ़िल्म बाजी देखी.. तो मैं इससे बहुत प्रेरित हुआ.. इस फ़िल्म को देखने के बाद मैंने तय कर लिया.. कि अब तो मुझे फ़िल्में ही बनानी हैं… इन सबके अलावा श्याम बेनेगल की बॉलीवुड जर्नी से जुड़ा एक और वाकया है …कहते हैं कि जीवन में अक्सर सबसे स्थायी बंधन अजीब घटनाओं से बनते हैं.. ऐसा ही कुछ श्याम बेनेगल और सिनेमा के दिग्गज सत्यजीत रे. के साथ हुआ.. उस समय एक उभरते हुए तैराक… बेनेगल 1950 के दशक के मध्य में कोलकाता तब के कलकत्ता में राष्ट्रीय तैराकी चैंपियनशिप में भाग लेने गए थे.. उनके चाचा ने उनसे यूं ही पूछा.. कि क्या उन्होंने पथेर पांचाली को देखा.. और फिर यही से उनके जीवन को एक नई दिशा, एक नई मंजिल मिली… हैदराबाद लौटकर उन्होंने एक फिल्म सोसाइटी बनाई.. और 1959 में राय की फिल्मों की स्क्रीनिंग का आयोजन किया,.. जिनमें मुख्य रूप से पथेर पांचाली ,. अपराजितों और अपुर संसार की फिल्में शामिल थीं..
कहते हैं कि जीवन में अक्सर सबसे स्थायी बंधन अजीब घटनाओं से बनते हैं..

 

1960 के दशक के मध्य तक बेनेगल पहली बार रे. से आमने-सामने नहीं मिले थे.. जब बेनेगल फिल्म के सेट पर गए.. तो मशहूर फिल्म निर्माता नायक की शूटिंग पूरी कर रहे थे.. और रे ने उन्हें शाम को अपने घर पर एक कप चाय पर आमंत्रित किया.. चाय पर चर्चा चार घंटे से ज़्यादा चली.. और रात 9 बजे के बाद ही समाप्त हुई.. तब तक रे, जो एक बेहतरीन फिल्म निर्माता थे,.. और बेनेगल, जो एक उभरते हुए फिल्म निर्माता थे,.. के बीच एक रिश्ता बन चुका था.. यह एक नए मुकाम पर पहुंच गया जब कुछ साल बाद बेनेगल ने रे को अपनी पहली फिल्म अंकुर का पहला दर्शक बनने के लिए आमंत्रित किया.. और इस तरह बेनेगल ने भारत के अब तक के सबसे बेहतरीन फिल्म निर्माता पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई

 

वैसे श्याम बेनेगल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख करने से पहले उन्होंने.. कई ऐड एजेंसियों के लिए विज्ञापन बनाए.. बॉलीवुड में बतौर निर्देशक श्याम ने अपनी शुरुआत ‘अंकुर’ से की थी। बॉलीवुड में अपनी जर्नी को लेकर श्याम बेनेगल ने एक साक्षात्कार में बताया था..  मुंबई आने के बाद सबसे पहले मैंने विज्ञापन एजेंसी में काम किया. बंबई आने के बाद मैंने कॉपी एडीटर के रूप में काम शुरू किया.. पहले साल में ही मैंने हिंदुस्तान लीवर के लिए एक विज्ञापन लिखा था.. और इसे राष्ट्रपति पुरस्कार मिला., छह महीने बाद ही मैं विज्ञापन फ़िल्में भी बनाने लगा.. और 1000 से ज़्यादा विज्ञापन फ़िल्में भी बना दी.. तो सीखने के लिहाज से ये मेरे लिए बहुत अच्छा रहा.. जब मैंने अपनी पहली फीचर फ़िल्म बनाई.. तो मुझे फ़िल्म निर्माण के तमाम पहलुओं की जानकारी थी.. यही वजह थी कि अंकुर बनाने के बाद जब वी. शांताराम ने मुझे फोन किया.. तो पूछा कि ऐसी फ़िल्म कैसे बनाई, अब तक क्या कर रहे थे.. फिर मैं राजकपूर से मिला तो उन्होंने मुझसे कहा.. कि तुमने पहले कभी फ़िल्म नहीं बनाई फिर भी इतनी अच्छी फ़िल्म बना दी.. ये कैसे किया. श्याम बेनेगल की शख्सियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है.. कि उनकी बनाई फिल्में पांच बार नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी हैं।

 

अंकुर फिल्म को लेकर श्याम बेनेगल कहते हैं कि
हम लोग शहर के बाहरी हिस्से में रहते थे. हम लोग इतवार या छुट्टी के दिनों में अपने मकान मालिक के लड़कों के साथ उनके फॉर्म हाउस में जाया करते थे. वहाँ मैंने जो कुछ महसूस किया. उन घटनाओं को मैंने कहानी के रूप में लिखा और ये कहानी हमारे कॉलेज की पत्रिका में भी छपी. तभी मैंने सोचा कि इसको लेकर ही पहली फ़िल्म बनाऊँगाअंकुर के बाद उन्होंने मंथन, कलयुग, निशांत, आरोहण और जुनून जैसी कई यादगार फिल्में बनाईं।

 

श्‍याम बेनेगल ने सिर्फ समानांतर फिल्‍मों को एक खास पहचान दिलाने में मदद की बल्कि भारतीय सिनेमा को नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी और स्मिता पाटिल जैसे अनमोल रत्‍न भी दिये. अंकुर, निशांत और मंथन जैससी उनकी फिल्‍में आज भी मील का पत्‍थर साबित हुई हैं. उनकी हर फिल्‍म का एक अलग ही अंदाज और मिजाज होता था. ‘अंकुर’ के लिए के लिए बेनेगल और शबाना दोनों को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया था. श्‍याम बेनेगल ने 1200 से भी अधिक फिल्मों का सफल निर्देशन किया है.

 

श्याम बेनेगल ने न सिर्फ सिनेमा बल्कि टेलीविजन के छोटे पर्दे पर भी ऐसी छाप छोड़ी है.. जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उनके ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे पौराणिक कथाओं वाले धारावाहिकों ने दर्शकों को बांधे रखा. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा आजादी से पहले जेल में लिखी गई ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ को आधार बनाकर ‘भारत एक खोज’ के नाम से एक ऐसी टेलीविजन सीरीज भी पेश की जिसने भारतीय टेलीविजन के इतिहास में एक नया आयाम हासिल किया.

 

साल 1980 के दशक में ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे सीरियल भारत के हर घर में अपनी जगह बना चुके थे। उस समय भारत सरकार को लगा कि भारत के विशाल इतिहास पर भी उन्हें एक टेलीविज़न धारावाहिक बनाना चाहिए, जो कि आम नागरिकों तक भारत की इस अनसुनी कहानी को पहुंचा सके। इस काम के लिए चुना गया श्याम बेनेगल को। हालांकि, अपने एक साक्षात्कार में बेनेगल ने बताया था कि ‘महाभारत’ धारावाहिक बनाने में उनकी दिलचस्पी थी, लेकिन वह पहले ही बीआर चोपड़ा को दिया जा चूका था। ऐसे में उनके पास भारतीय इतिहास पर एक धारावाहिक बनाने का ऑफर आया। बेनेगल ने यह ऑफर स्वीकार किया और इस टीवी सीरियल का आधार चुना गया नेहरु द्वारा लिखी गयी किताब ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ को। बेनेगल बताते हैं, “यह किताब मुझे बचपन में मेरे जन्मदिन पर तोहफे के तौर पर मिली थी और यह किताब मेरे लिए भारतीय इतिहास से रू-ब-रू कराने वाली पहली कड़ी थी।”बताया जाता है कि ओम पूरी ने शो की शूटिंग के दौरान सिनेमा से एक साल का ब्रेक ले लिया था.. और खुद को पूरी तरह से ‘भारत एक खोज’ के लिए समर्पित कर दिया। लेकिन इन सभी कलाकारों की मेहनत रंग लायी। आज भी लोग ‘भारत एक खोज’ के बारे में बात करते हैं। शो से जुड़े सभी कलाकारों का शायद वह सबसे बेहतरीन काम था, जिसे बेनेगल के निर्देशन ने और निख़ारा

 

बाद में लंबे अर्से बाद राज्य सभा टीवी के लिए श्याम बेनेगल ने एक शो बनाया ..नाम था संविधान ….ये एक ऐसा शो था जिसने युवा भारत को बताया कि संविधान का मसौदा तैयार करने में क्या-क्या हुआ?

बाइट-बेनेगल छह साल तक राज्यसभा के सांसद भी रहे हैं. संसद की गतिविधियों को जानने के बाद उन्होंने इस धारावाहिक पर काम करने का फैसला किया….संविधान पर टीवी प्रोग्राम को एक रोमांचक अनुभव बताते हुए श्याम बेनेगल ने बताया था कि { SCROLL GFX IN} ये रोमांचक इसलिए था क्योकि हमारे पूर्वजों ने इस संविधान को बनाने में 3 साल लगाए. इसे बनाने में संसद में बहस होती थी उसमें काफ़ी ड्रामा था. संविधान के बनने की कहानी एक नोवेल जैसी है या कहूं तो एक नाटक जैसी.”

श्याम की गिनती उन निर्देशकों में होती है, जिनकी तारीफ राजनेता भी करते रहे हैं । इंदिरा गांधी ने एक बार उनकी तारीफ करते हुए कहा था कि{ SCROLL} उनकी फिल्में मनुष्यता को अपने मूल स्वरूप में तलाशती हैं।

 

टीवी के बाद ….एक बार फिर लौटते हैं फिल्म डायरेक्टर श्याम बेनेगल की तरफ…1976 में श्याम बेनेगल की एक फ़िल्म आई थी। इस फ़िल्म के पोस्टर में एक लाइन दिखती है, जो इससे पहले किसी फ़िल्म में नहीं देखी गई थी। इस लाइन में लिखा था ‘गुजरात के पांच लाख किसान पेश करते हैं – मंथन’ श्याम बेनेगल ने वर्ष 1976 में क्राउडसोर्सिंग का एक अद्भुत नमूना पेश करते हुए अपनी फ़िल्म को रिलीज़ किया था। इस फ़िल्म के लिए गुजरात के पांच लाख किसानों ने 2-2 रुपये दिए थे और फ़िल्म के प्रोड्यूसर बने थे। दस लाख के बजट में बनी ये फ़िल्म भारत की पहली फिल्म थी जिसमें किसी भी प्रोडक्शन हाउस का पैसा नहीं लगा था। गुजरात को ऑपरेटिव मिल्क फेडरेशन के हर किसान ने 2-2 रुपये की डोनेशन दी थी।

 

विजय तेंदुलकर ने इस फ़िल्म का स्क्रीनप्ले लिखा था। मशहूर कवि कैफ़ी आज़मी ने फ़िल्म के डायलॉग लिखे थे। वहीं प्रीति सागर ने फ़िल्म में एक गुजराती फोक सॉन्ग गाया था। ‘मेरो गाम कथा परे’ नाम के इस गाने को नेशनल अवार्ड भी मिला था। मंथन को आधिकारिक तौर पर एकेडमी अवार्ड्स के लिए भेजा गया था और इस फ़िल्म ने बेस्ट फ़िल्म और स्क्रीनप्ले का नेशनल अवार्ड भी जीता था। फ़िल्म में एक सर्जन, डॉ. राव एक गांव में पहुंचते हैं। उनका मकसद एक दूध की कोऑपरेटिव सोसाइटी को खोलना है। वे एक लोकल बिजनेसमैन से मिलते और सरपंच से मिलते हैं लेकिन ये दोनों ही नहीं चाहते कि गांव वाले इस मामले में आत्मनिर्भर हो।

सूरज का सातवाँ घोड़ा….श्याम बेनेगल की ये एक और बेहतरीन फिल्म थी… 1993 में बनी ये फिल्म धर्मवीर भारती के प्रसिद्ध उपन्यास सूरज का सातवाँ घोड़ा पर आधारित है। धर्मवीर भारती के उपन्यास को लोग पहले से ही पसंद करते थे । साहित्य जैसे ऐसे विषय को छूना और उस पर फिल्म बनाना किसी चुनौती से कम नहीं है। लेकिन श्याम बेनेगल न केवल चुनौती स्वीकार की बल्कि उसमें कामयाब भी हुए…इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता रजित कपूर को मौका दिया …रजित कपूर ने एक साक्षात्कार में बताया था कि { SCROLL GFX} ‘श्याम जी के साथ सबसे बड़ी बात यह है कि वो एक्टर्स को बहुत चाहते हैं. मतलब वो एक नक्शा सा बना देते हैं कि उन्हें उस किरदार से क्या चाहिए. फिर वो उसी दायरे के अंदर आपको खेलने का मौका भी देते हैं. शूटिंग के पहले जब भी ही रिहर्सल हो रहा होता है, तो वहां वो इसी ताक में रहते हैं कि मुझे एक्टर क्या दे पा रहा है. कई बार वो उस एक्टर का डेडिकेशन देखते हुए अपना शॉट व एंगल तक चेंज कर देते हैं. एक्टर का जो कंट्रीब्यूशन है, उसे वो समझते हैं उसे निखारते हैं और उसका पूरा इस्तेमाल भी करते हैं.

 

श्‍याम बेनेगल ने कुल मिलाकार निशांत, अंकुर, मंथन, मंडी, सरदारी बेगम, मम्मो, सूरज का सातवां घोड़ा, वेल्कम टू सज्जनपुर, हरी भरी और आरोहण जैसे कई खास फिल्‍में बनाकर खुद जहां कामयाबी की बुलंदियों को छुआ.वहीं बॉलीवुड को बेहतरीन फिल्में दीं

‘मंडी’ जैसी फिल्‍म बनाकर उन्‍होंने इस बात को साबित कर दिया कि वे इतनी बोल्‍ड फिल्‍म भी बना सकते हैं और सरदारी बेगम में उन्‍होंने समाज से लड़कर संगीत सिखने वाली एक महिला की कहानी पेश की जिसे समाज स्‍वीकार नहीं करता…फ़िल्म में सरदारी के जीवन के कई पहलू सामने आते हैं.श्याम बेनेगल ने कई महान विभूतियों पर भी फिल्में बनाई… जिनमें सत्यजीत रे, सुभाष चंद्र बोस, बंगबंघु फिल्में शामिल हैं श्याम बेनेगल को अपने काम के लिए नेशनल अवॉर्ड्स, दादा साहब फाल्के सम्मान, पद्मश्री और पद्मभूषण समेत कई बड़े अवॉर्ड्स से नवाजा गया । पिछले काफी वक्त से श्याम बेनेगल की तबीयत खराब है । Khabartoptalkies की तरफ से श्याम बेनेगल जी को जन्म दिन पर ढेर सारी बधाई और जल्द से जल्द वे स्वस्थ्य हों यही कामना है…

gulzar sahab हैप्पी बर्थडे सचिन