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जज्बाती नगमों के बेताज बादशाह थे मुकेश

मुकेश जज्बाती नगमों के बेताज बादशाह थे.कहा जाता है कि निजी जिंदगी में बेहद संवेदनशील मुकेश के गाए गीतों में संवेदनशीलता हावी रही…मुकेश की प्रकृति ऐसी थी कि वो दूसरों के दुख दर्द को अपना समझकर उन्हें दूर करने की कोशिश में लग जाते थे…लेकिन वो इस बात से अनजान थे कि उनके गीतों ने करोड़ों लोगों के दिलों को राहत दी थी…सुकून के पल दिए…खूशनुमा अहसास दिया…

मुकेश चंद माथुर का जन्म 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में हुआ था। मुकेश अपने जमाने के प्रसिद्ध गायक अभिनेता कुंदनलाल सहगल के प्रशंसक थे और उन्हीं की तरह गायक अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे। मुकेश 1940 में मुंबई पहुंचे थे। 1945 में आई फिल्म पहली नजर में अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन में दिल जलता है तो जलने दे गीत के बाद मुकेश कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए…इसी गीत को सुनने के बाद सहगल ने मुकेश को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था…साल 1958 में रिलीज फिल्म यहूदी के गाने ये मेरा दीवानापन है गाने की कामयाबी के बाद मुकेश को बतौर गायक अपनी पहचान मिली। इसके बाद मुकेश ने एक से बढ़कर एक गीत गाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।मुकेश ने अपने तीन दशक के सिने करियर में दो सौ से भी ज्यादा फिल्मों के लिए गीत गाए। मुकेश को उनके गाए गीतों के लिए चार बार फिल्म फेअर के सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फ़िल्‍म फ़ेयर पुरस्‍कार पाने वाले वह पहले पुरुष गायक थे। इसके अलावा साल 1974 में रिलीज फिल्म रजनीगंधा के गाने कई बार यूं ही देखा है के लिए मुकेश नेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किए गए।

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मुकेश ने गाने तो हर किस्म के गाये, मगर दर्द भरे गीतों की चर्चा मुकेश के गीतों के बिना अधूरी है। उनकी आवाज़ ने दर्द भरे गीतों में जो रंग भरा, उसे दुनिया कभी भुला नहीं सकेगी। यही नहीं मकेश ने अपनी आवाज़ में मेरा जूता है जापानी जैसा गाना गाकर लोगों को सारा गम भूल कर मस्त हो जाने का भी मौका दिया।मुकेश ने संगीत की दुनिया में अपने आपको दर्द का बादशाह तो साबित किया ही, इसके साथ साथ वैश्विक गायक के रूप में अपनी पहचान भी बनाई।

 

 

मुकेश के गीतों की चाहत उनके मुरीदों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेगी। उनके गीत हम सबके लिए प्रेम, हौसला और आशा का वरदान हैं। मुकेश जैसे महान गायक न केवल दर्द भरे गीतों के लिए, बल्कि वो तो हम सबके दिलों में सदा के लिए बसने के लिए बने थे। उनकी आवाज़ का अनोखापन और भीगी आवाज़ न जाने कितने संगीत प्रेमियों के दिलों को छू जाती है। वो एक महान गायक तो थे ही, साथ ही एक बहुत अच्छे इंसान भी थे। वो सदा मुस्कुराते रहते थे और खुशी-खुशी लोगों से मिलते थे।

राजकपूर की फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम के गाने चंचल निर्मल शीतल की रिकॉर्डिंग पूरी करने के बाद वह अमरीका में एक कंर्सट में भाग लेने के लिए गए जहां 27 अगस्त 1976 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके अनन्य मित्र राजकपूर को जब उनकी मौत की खबर मिली तो उनके मुंह से बरबस निकल गया मुकेश के जाने से मेरी आवाज और आत्मा दोंनो चली गईं।

gulzar sahab हैप्पी बर्थडे सचिन