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अनिल दा का संगीत कालजयी है

बॉलीवुड और हिंदी सिनेमा के  संगीत के शुरुआती दौर के सबसे सुरीले, प्रयोगधर्मी और लोकप्रिय संगीतकारों की बात जब भी होगी तो अनिल विश्वास  का नाम ज़ुबां पर सबसे पहले आता है, अनिल दा ने उस दौर के अन्य  संगीतकारों के साथ मिलकर  फ़िल्मों में पार्श्व  गायन  की न सिर्फ़ बुनियाद रखी बल्कि उसे काफ़ी हद तक संवारा भी..40 के दशक और 50 के दशक की शुरुआती वर्षों में अनिल विश्वास के संगीत में सबसे ज्यादा विविधता थी। संगीत रचना के लिहाज से भी अनिल दा का यह सबसे सुनहरा दौर था

आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है/ दूर हटो, दूर हटो, दूर हटो ऐ दुनिया वालो, हिन्दुस्तान हमारा है’

यही गाना भारत की आजादी के 4 साल पहले देशभक्ति का तराना  बन गली-गली गूँजा था। बच्चे-बच्चे की जबान पर था ये गाना

1943 में आई फिल्म किस्मत के इस गीत को बड़नगर के रहने वाले प्रसिद्ध गीतकार कवि प्रदीप ने लिखा था और पूर्वी बंगाल के संगीतकार अनिल बिस्वास ने अपने  जोशीले संगीत से सँवारा था। इस गीत को सुनकर देशभक्तों की रगों में खून की रफ्तार तेज हो जाती थी।

अनिल विश्वास  की किस्मत भी इसी फिल्म से बनी..कह  सकते हैं कि  उनके कॅरियर में यही फिल्म क़िस्मत मील का पत्थर मानी जाती है

अनिल विश्वास को हिन्दी फ़िल्म संगीत के पुरोधा के तौर पर जाना जाता है, आरंभिक संगीतकारों की जमात में अनिल विश्वास का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है

अनिल विश्वास का जन्म पूर्वी बंगाल के बरीसाल  में 7 जुलाई 1914 को हुआ था। चार साल की उम्र से वे गाने लगे थे। किशोर उम्र में देशभक्ति जागी और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। जेल गए और यातनाएँ सही। 16 साल की उम्र में नवंबर 1930 में कलकत्ता में महान बाँसुरी वादक पन्नालाल घोष के घर शरण ली। अनिल दा की बहन पारुल घोष ने पन्नालालजी से विवाह रचाया था। युवा अनिल ने यहाँ ट्यूशनें की। काजी नजरूल इस्लाम के कहने पर मेगा फोन रिकॉर्ड कंपनी में काम किया। उनका पहला रिकॉर्ड उर्दू में जारी हुआ था। यहीं पर उनकी मुलाकात कुंदनलाल सहगल और सचिन देव बर्मन से हुई थी। हीरेन बोस के साथ मुंबई आए और 26 साल संगीत सृजन किया। अभिनेत्री मीना कपूर से उन्होंने शादी की थी।

अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन की पहली फिल्म धर्म की देवी थी जो 1935 में रिलीज हुई थी और अंतिम फिल्म छोटी-छोटी बातें थी जो 1965 में प्रदर्शित हुई थी । इसे अभिनेता मोतीलाल ने बनाया था

अनिल दा … ऐसे विरले संगीतकार रहे हैं, जिन्होंने ख्याल, ठुमरी, दादरा, वैष्णव संकीर्तन, रवीन्द्र-संगीत, नज़रुल गीति के साथ-साथ लोक-संगीत का भी ज्ञान था..उनकी धुनों में जो संगीत है, वह आज भी लोकप्रिय है

अनिल दा अपनी धुनों में पाश्चात्य वाद्यों के सहमेल से एक बिलकुल नए किस्म का आधुनिक संगीत रच रहे थे, उनमें हवाईयन गिटार, ट्रम्पेट, मैंडोलिन, चेलो और ओबो की भूमिकाएं शामिल है


अनिल दा के गानों की बात करें तो 1935 में भारत की बेटी का… तेरे पूजन को भगवान बना मन मन्दिर आलीशान ,1936 में आई मनमोहन  फिल्म  का तुम्हीं ने मुझको प्रेम सिखाया, 1938 मे आई ग्रामोफोन सिंगर का ‘मैं तेरे गले की माला’, 1943 में आई फिल्म हमारी बात  का बादल सा निकल चला यह दल मतवाला रे मैं उनकी बन जाऊँ रे’, 1942 में आई फिल्म बसंत का ‘कांटा लागो रे सजनवा मोसे राह चली ना जाये’ और 1947 में आई फिल्म नैया  का सावन भादों नयन हमारे बरस रहे दिन रात जैसे गीत सुनने में उतने ही ताजे और कर्णप्रिय लगते हैं.

अनिल दा ने न  सिर्फ अपने संगीत से फिल्म संगीत को शास्त्रीय, कलात्मक और मधुर बनाया बल्कि अनेक गायक-गायिकाओं को तराशा भी .. इनमें तलत मेहमूद/ मुकेश/ लता मंगेशकर/ सुरैया के नाम प्रमुखता से गिनाए जा सकते हैं।

अनिल दा अपने करियर के आरंभ में बॉम्बे टॉकीज से जुड़े, बाद में स्वतंत्र संगीतकार की हैसियत से लगभग 70 फिल्मों में संगीत दिया..अनिल बिस्वास के संगीत पर संगीतकार नौशाद ने कहा था कि – ‘अनिल बिस्वास एकमात्र ऐसे बंगाली संगीतकार हैं, जो पंजाबी फिल्म में पंजाबी, गुजराती फिल्म में गुजराती, मुगल फिल्म में मुगलिया संगीत देने में माहिर हैं। वे कीर्तन, जत्रा और रवीन्द्र संगीत के अलावा भी हिन्दुस्तानी संगीत को बखूबी जानते हैं।

कोलकत्ता से मुंबई आए अनिल दा का सफर फिल्म जगत में सिर्फ 26 साल रहा।…1961 में बीस दिनों में छोटे भाई सुनील और बड़े बेटे के निधन ने अनिल दा को भीतर से तोड़ दिया। वे मुंबई से दिल्ली चले गए और  साउथ एक्सटेंशन में रहे। यहाँ रहते हुए भी उन्होंने आकाशवाणी को अपनी सेवाएँ दीं और ‘हम होंगे कामयाब एक दिन’ जैसा कौमी तराना युवा पीढ़ी को दिया। इस गीत की शब्द रचना में उन्होंने कवि गिरिजा कुमार माथुर से सहयोग किया था।

1994 में मध्य प्रदेश शासन की संस्कृति विभाग ने  अनिल दा को  लता मंगेशकर अलंकरण से सम्मानित किया

31मई  2003  को अनिल दा का निधन हो गया । कुल मिलाकर कहें तो अनिल दा का संगीत कालजयी है। अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी संगीत धरोहर संगीतप्रेमियों के लिए किसी प्रकाश स्तंभ के समान है। 

gulzar sahab हैप्पी बर्थडे सचिन