ऐसा कलाकार जो हर फन में था माहिर…एक्टिंग, सिंगिंग ,कॉमेडी का अद्भुत मेललेकिन क्या आप जानते …..हैं कि किशोर दा एक कवि भी थे….नहीं ना तो आज हम आपको किशोर दा कि एक कविता के बारे में बताते हैं
नैट-
पान सो पदारथ, सब जहान को सुधारत
गायन को बढ़ावत जामें चूना चौकसाई है
सुपारिन के साथ..साथ मसाल मिले भांत..भांत
जामें कत्थे की रत्तीभर थोड़ी..सी ललाई है
बैठे हैं सभा मांहि बात करें भांत..भांत
थूकन जात बार..बार जाने का बड़ाई है
कहें कवि किसोरदास चतुरन की चतुराई साथ
पान में तमाखू किसी मूरख ने चलाई है
कहा जाता है कि यह कविता उन्होंने खंडवा छोड़कर मुंबई जाने से पहले लिखी थी। दुर्लभ कविता की पंक्तियों में किशोर की जिंदादिली और खिलंदड़ प्रकृति की छाप साफ दिखाई पड़ती है,किशोर कुमार ने यह छंदबद्ध कविता पंडित किसोरदास खंडवावासी के तखल्लुस से रची थी और अपना पता लिखा था..
पंडित किसोरदास खंडवावासी
पता -बम्बई बाजार रोड, गांजा गोदाम के सामने, लायब्रेरी के निकट वाला बिजली का खम्बा, जिसपे लिखा है..’डोंगरे का बालामृत’।
कविता ऐसी कि उसमें छंद के अनुशासन को खूबी से निभाया गया है, यूं कहें तो लगता है कि इस कविता को किसी धुरंधर कवि ने लिखा होगा। पान की महिमा पर लिखा गया छंद इस बात से परदा हटाता है कि किशोर कुमार एक उम्दा कवि भी थे, लेकिन उनका कवि रूप
लोगों के सामने नहीं आ पाया। आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार मुंबई में बस तो गये, लेकिन उनका मन आखिरी सांस तक खंडवा में रमा रहा। वह अक्सर कहा करते थे, दूध..जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जायेंगे। इसके अलावा वह खुद को अक्सर किशोर कुमार खंडवावाले कहते थे। 13 अक्तूबर 1987 को मुम्बई में किशोर के निधन के साथ उनकी खंडवा में बसने की ख्वाहिश ने भी दम तोड़ दिया।