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संगीतकार कल्याणजी वीर जी शाह

संगीतकार कल्याणजी वीर जी शाह

कल्याणजी वीर जी शाह …जिन्हें हम और आप संगीतकार कल्याण जी के नाम से जानते हैं… कल्याण जी का जन्म गुजरात में हुआ था… बचपन से ही कल्याण जी संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे… हालांकि उन्होने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नही ली थी और अपने सपने को पूरा करने के लिये मुंबई आ गये… और संगीतकार हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम करने लगे… कल्याणजी ने अपने फ़िल्मी करियर में लगभग 250 फ़िल्मों में संगीत दिया और उनकी आखरी फ़िल्म त्रिदेव थी…कल्याणजी-आनंदजी अपने दौर की महान संगीतकार जोड़ी

इस जोड़ी के दिग्गज संगीतकार कल्याणजी की आज यानी 24 अगस्त को पुण्यतिथि है..आनंदजी जितने हंसमुख किस्म के इंसान हैं, उनके बड़े भाई कल्याणजी उतने ही गंभीर शख्सियत थे..दोनों भाईयों ने मिलकर हिंदी सिनेमा के एक से एक बेहतरीन गानों को अपने संगीत से सजाया..इस जोड़ी ने करीब 250 से भी ज्यादा गाने फिल्म इंडस्ट्री को दिए..कल्याणजी के बारे में बात करें तो उनका शुरू से ही संगीत की तरफ झुकाव रहा था. इसकी एक वजह यह भी रही कि उनके दादा-दादी की लोक संगीत में काफी अच्छी पकड़ थी. कल्याणजी-आनंदजी को अपने दादा-दादी से विरासत में संगीत मिला

गुजरात में कच्छ के कुंडरोडी मे 30 जून 1928 को जन्में कल्याणजी वीर जी शाह बचपन से ही संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे। उन्होंने हालांकि किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नही ली थी। वह अपने सपने को पूरा करने के लिये मुंबई आ गये और संगीतकार हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम करने लगे।60 और 70 के दशक में इस जोड़ी ने संगीत को बदलकर रख दिया था.. 60 से लेकर 80 के दशक तक, कल्याणजी और आनंदजी की जोड़ी ने फिल्म इंडस्ट्री को कई ऐसी सौगातें दीं, जिन्हें पहले कभी किसी ने नहीं आजमाया था. जैसे नागिन बीन के लिए म्यूजिक देने के लिए उन्होंने ही पहली बार क्लावायलिन का इस्तेमाल किया था. पहली बार इंडस्ट्री को रैप सॉन्ग दिया

कल्याणजी और आनंदजी एक गुजराती परिवार से ताल्लुक रखते हैं…बतौर संगीतकार सबसे पहले वर्ष 1958 मे प्रदर्शित फिल्म ‘सम्राट चंद्रगुप्त’में कल्याण जी को संगीत देने का मौका मिला। वर्ष 1960 मे उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद जी को भी मुंबई बुला लिया। इसके बाद कल्याणजी ने आंनद जी के साथ मिलकर फिल्मों मे संगीत देना शुरू किया। मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां’ को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है। वर्ष 1968 मे प्रदर्शित फिल्म ‘सरस्वती चंद्र’के लिये कल्याणजी -आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार साथ-साथ फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया..वर्ष 1970 मे विजय आनंद निर्देशित फिल्म ‘जानी मेरा नाम’ में ‘नफरत करने वालो के सीने मे प्यार भर दू’, ‘ पल भर के लिये कोई मुझे प्यार कर ले’ जैसे रूमानी संगीत देकर कल्याणजी-आंनद जी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया।मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म ‘सच्चा-झूठा’ के लिये कल्याणजी-आनंद जी ने बेमिसाल संगीत दिया।साल 1974 मे प्रदर्शित ‘कोरा कागज’के लिये भी कल्याणजी-आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गयावर्ष 1992 मे संगीत के क्षेत्र मे बहुमूल्य योगदान को देखते हुये वह पद्मश्री से सम्मानित किये गये।लगभग चार दशक तक अपने जादुई संगीत से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले कल्याण जी 24 अगस्त 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गये ।

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