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गुलशन बावरा….एक ऐसा गीतकार जिसने बचपन में ही कत्लेआम देखा..आंखों के समाने हो गया था परिवार का कत्ल

एक ऐसा गीतकार जिसने बचपन में ही कत्लेआम देखा। लाहौर के करीब गांव शेखूपुरा में गुलशन ने अपनी आंखों के सामने अपने पिता और अपने चाचा का कत्ल होते देखा..लेकिन बड़े होकर अपनी शायरी से , गीतों से लोगों का दिल जीता. जी हां इस गीतकार का नाम है गुलशन कुमार मेहता , जिसे हम और आप गुलशन बावरा के नाम से जानते हैं…12 अप्रैल 1937 को लाहौर के करीब गांव शेखूपुरा में इनका जन्म हुआ । यहां इनके पिता का कारोबार ठीकठाक चल रहा था ..लेकिन उसी समय विभाजन की त्रासदी हुई ..कई परिवार तबाह हो गए, इस त्रासदी से गुलशन मेहता का परिवार भी अछूता नहीं रहा। और इनके  आंखों के सामने पिता और चाचा का कत्ल हो गया..गुलशन किसी तरह से बचकर भारत आ गए। इनकी बहन तब जयपुर में थीं, वह उन्हें अपने पास ले आईं…बाद में  दिल्ली में इनके बड़े भाई को नौकरी मिल गई तो ये भी दिल्ली आ गए…और यहीं से स्नातक की पढ़ाई पूरी की

कॉलेज के दिनों में ही गुलशन को शायरी का शौक चढ़ा.. फिल्मों में काम करने का शौक था और वह किसी तरह बंबई आना चाहते थे। मुफलिसी का आलम था.. उन्होंने रेलवे में नौकरी के लिए अप्लाई किया तो उनको पोस्टिंग मिली कोटा, राजस्थान में। जब वह वहां पहुंचे तो वह नौकरी भर चुकी थी, अगले नंबर उनको मिला बंबई
साल 1955  गुलशन मुंबई आ गए ।और फिर शुरू हुआ गुलशन मेहता का हिंदी सिनेमा में सफर

गुलशन मेहता के गुलशन बावरा बनने की भी एक कहानी है.. कहते हैं कि   फ़िल्म सट्टा बाज़ार के वितरक शांतिभाई पटेल, गुलशन के काम से ख़ासे खुश थे। रंग-बिरंगी शर्ट पहनने वाले लगभग 20 साल के युवक को देख उन्होंने कहा कि मैं इसका नाम गुलशन बावरा रखूँगा। यह बावरे (पागल व्यक्ति) जैसा दिखता है।फिल्म प्रदर्शित होने पर उसके पोस्टर्स में सिर्फ तीन लोगों के नाम प्रमुखता से प्रदर्शित किए गए। एक फिल्म के निर्देशक रविंद्र दवे, संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी और बतौर गीतकार गुलशन बावरा।

गुलशन बावरा ने दोस्ती, रोमांस, मस्ती, ग़म- जीवन के हर रंग के गीतों को अल्फाज़ दिए।गुलशन बावरा ने हिंदी सिनेमा को ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’ से लेकर ‘यारी है ईमान मेरा’ तक गाने लिखे हैं। उनकी कलम से लगभग हर अवसर के लिए गीत निकले।इन्होंने कल्याण जी -आनंद जी के साथ भी काम किया, तो  आर डी बर्मन के साथ तो एक से बढ़कर एक हिट दिए..उस दौर के सभी गायकों ने गुलशन बावरा के अल्फाजों को अपनी आवाज़ दी

फिल्म जंजीर का एक गाना..दीवाने हैं ..दीवानों को  ना घर चाहिए… ये गाना गुलशन बावरा पर ही फिल्माई गई है। इससे जुड़ा एक किस्सा भी है ।  गाने के रिकॉर्डिंग के दौरान रफी साहब कुछ परेशान थे। जब गाना हो गया तो कल्याण जी आनंद जी ने कहा कि रफी साहब एक टेक और कर दीजिए। रफी साहब तो परेशान थे ही तब उनके पास गुलशन बावरा पहुंचे और कहा कि रफी साहब -आपको मालूम है कि ये गाना किस नाचीज़ पर पिक्चराइज होना है, रफी साहब ने कहा किस पर ?तो बावरा बोले मुझ पर। इससे रफी साहब काफी खुश हुए।और दुबारा उन्होंने गाना रिकॉर्ड किया…कुल मिलाकार गुलशन बावरा ने बॉलीवुड को कई शानदार गीत गिए..7 अगस्त 2009 को इस गीतकार का इंतकाल हो गया

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