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उषा खन्ना -जिनकी धुनों की झंकार आज भी लोगों के जहन में ताजा है

वो 50 का दशक था—जब मध्य प्रदेश की एक 16 साल की लड़की अपने सपनों को पूरा करने के लिए मायानगरी यानि मुंबई पहुंची—वो बचपन से सुर संगम के बीच पली बढ़ी—लिहाजा शौक भी था गायिका बनने का—इसलिए अपने सपनों को सच करने के लिए मासूम सी बच्ची ग्वालियर से मुम्बई पहुंची—हालांकि, उस लड़की के लिए सबकुछ आसान नहीं था—क्योंकि उस दौर में लता मंगेशकर और आशा भौसले जैसी दिग्गज गायिका हर फिल्मकार की पहली पसंद हुआ करती थी—ऐसे में ग्वालियर से मुंबई आई 16 साल की इस लड़की का सिंगर बनने का सपना…सपना ही रह गया—लेकिन, वो कहते हैं कि अगर इरादे पक्के हो तो मंजिल जरुर मिलती है—कुछ ऐसा ही हुआ उषा खन्ना के साथ—जी हां वही उषा खन्ना—जिनकी धुनों की झंकार आज भी लोगों के जहन में ताजा है—

 

ऐसा कहा जाता है कि जब उस दौर में उषा को एक संगीतकार ने गाने लायक नहीं समझा—तो उन्होंने गाने का इरादा छोड़ दिया— कुछ समय बाद उषा का नाम ताजा हवा के झोंके जैसी धुनें रचने वाली संगीतकार के तौर पर उभरा—उनके निर्देशन में लता मंगेशकर और आशा भौसले ने ही नहीं, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर, येसुदास से लेकर हेमलता, अनुराधा पौडवाल जैसी सिंगर्स ने कई सदाबहार नगमें गाए—यही वजह है कि उन्हें हिन्दी सिनेमा की सबसे कामयाब महिला संगीतकार माना जाता है— यूं तो उषा से पहले जद्दन बाई यानि नर्गिस की मां और सरस्वती देवी संगीतकार के तौर पर सक्रिय थीं, लेकिन उषा खन्ना अकेली ऐसी महिला संगीतकार थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में सबसे लम्बी पारी खेली—दरअसल—उषा को संगीत की प्रेरणा उनके पिता मनोहर खन्ना से मिली थी

ऊषा खन्ना का संगीतकार बनना इत्तेफ़ाक था…. वो तो गायक बनना चाहती थीं—लेकिन, उनके पिता के जोड़ीदार के बेटे इंदीवर ने उन्हें संगीत निर्देशक बनने की सलाह दी…बहुत कम लोग गीतकार जावेद-अनवर की जोड़ी को जानते होंगे— जावेद, ऊषा के पिता मनोहर खन्ना थे और अनवर इंदीवर के वालिद थे…फ़िल्मों के शौक ने मनोहर साहब से अच्छी ख़ासी नौकरी छुड़वा दी थी—पर वो फिल्मों में ज़्यादा कामयाब नहीं हुए—लेकिन, उनकी बिटिया, यानी ऊषा खन्ना ने ज़रूर सफलता देखी—दरअसल एक दिन इंदीवर उन्हें फिल्म दिल दे के देखो के निर्माता शशधर मुखर्जी के पास ले गए—ओपी नैयर से उन दिनों मुखर्जी साहब की अनबन चल रही थी—उन्होंने उषा खन्ना का ओपी स्टाइल का म्यूज़िक सुना तो ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें काम दे दिया और उनकी गाड़ी चल पड़ी

 

उषा खन्ना ने अपने हुनर के दम पर अपनी शर्तों के हिसाब से पुरुष संगीतकारों की भीड़ में अलग मुकाम बनाया—ऐसा मुमकिन है, कि नई पीढ़ी उषा खन्ना के नाम से अनजान हो, लेकिन उनकी धुनों वाले गाने आज की पीढ़ी भी गुनगुनाती है—1960 से लेकर 1970 वाले दौर में उषा खन्ना कामयाब संगीतकार बन चुकी थीं—यहां वे कल्याण जी-आनंद जी, जयदेव, लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल और रॉबिन बनर्जी जैसों के साथ कदम ताल कर रहीं थीं—यहां खास बात ये थी कि उषा खन्ना ने रॉबिन बनर्जी से गायन सीखा था और अब वो उनसे ही मुकाबिल कर रहीं थीं—हालांकि उस दौर में पंचम जैसे धुरंधर भी उषा के सामने थे—इस आंधी में उनके कदम डगमगाए…लेकिन, उन्होंने अपनी ज़मीन नहीं छोड़ी,,, इस दौर में भी उषा खन्ना ने अच्छे गाने कंपोज़ किये—हालांकि जैसे जैसे बॉलीवुड में उनके पांव जमने लगे—वो फिल्ममेकर सावन कुमार के संपर्क में आई—-फिल्म हवस के सेट पर उषा-सावन से पहली बार मिली थी—यहीं से दोनों के प्यार की शुरुआत हुई और बाद में परिवार के खिलाफ जाकर शादी रचाई थी—उषा खन्ना ने ज्यादातर गाने अपने पति सावन कुमार के लिए कंपोज किए थे—उषा-सावन की शादी 7 तक चली थी. बाद में दोनों स्वेच्छा से अलग हो गए थे—-इसे विडंबना कहिए या मजबूरी, सावन कुमार ने सौतन फ़िल्म का संगीत उषा को ही कंपोज करने को दिया—और उन्होंने ने भी अच्छा संगीत दिया—नतीजा ये था कि उस फ़िल्म के लगभग सारे गाने हिट हुए—-ऐसा कहा जाता है कि उस दौर में जब गानों में से मेलोडी गायब होती जा रही थी, उषा जी उसका दामन थामे हुए चल रही थीं—लेकिन, उनके करियर में एक दौर ऐसा भी आया जब ऊषा खन्ना पिछड़ने लगी–वजह थी लोगों की पसंद–दरअसल बदलते समय में लोगों की पसंद भी बदल गयी—चो वहीं पहले की तरह लफ़्ज़ों में गहराई भी नहीं बची थी, संगीत से मेलोडी तो लगभग ख़त्म ही गयी थी—हालांकि ऊषा जी ने वापसी की भरपूर कोशिश की और उन्होंने साल 2003 में फिल्म दिल परदेसी हो गया के लिए आखिरी बार संगीत दिया—लेकिन, वो कामयाब नहीं हो पाईं…ख्याल जो भी रहा हो… सिचुएशन जैसी भी हो… उषा खन्ना ने अपने फिल्मी करियर में एक से बढ़कर एक गीत दिए….

ग्वालियर में जन्मीं उषा ने कभी संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली लेकिन उनका संगीत लोगों के ज़हन में अपनी एक खास जगह बनाता चला गया।बचपन में पिता से प्रेरणा लेकर उन्होंने लिखने में हाथ आजमाया, मन गायकी की तरफ भी बढ़ा… लेकिन उनकी किस्मत में संगीत निर्देशक बनना ही लिखा था। पिता संगीत विशारद थे… लिहाजा शास्त्रीय संगीत की समझ उन्हें वहीं से हुई।शुरुआती दौर था… उषा इंडस्ट्री में नई नई थीं… एक फिल्म मिली… दिल देके देखो… जिसमें उन्हें संगीत देना था… लेकिन वो जमाना ओपी नैय्यर साहब का था… लिहाजा निर्देशक चाहते थे… कि उषा उन्हीं के अंदाज़ में म्यूजिक दें…और एक संगीतकार के तौर पर उषा ने उन्हें निराश नहीं किया…ऊषा खन्ना ने बहुत सी फिल्मों में संगीत दिया लेकिन उनका पसंदीदा गाना फिल्म साजन बिना सुहागन से है …जिसे खुद ऊषा खन्ना से सुनना एक अलग ही अहसास है…

ऊषा खन्ना के संगीत की सबसे बड़ी खासियत है गीत के बोल से उसका जुड़ाव … वो इंडस्ट्री के चंद ऐसे संगीतकारों में शामिल रहीं हैं जो गीतकार के गीत लिखने के बाद उसकी धुन बनाती थीं… और शायद उनका काम करने का यही तरीका उनके संगीत को एक अलग ही तरह की ऊंचाई पर ले जाता है।
ऊषा खन्ना बेहद कमाल की संगीतकार रहीं हैं, वे बेशक अपने दौर के कई मशहूर संगीतकारों जितना मशहूर नहीं हुई लेकिन अपनी संगीत साधना से वो फिल्म संगीत में अपना एक अलग मुकाम बनाने में सफल हुईं।
उषा खन्ना ने कई गायकों को मौका दिया, उनमें से आज कई लोग सफलता की बुलंदियों पर हैं… इस लिस्ट में शब्बीर हैं…पंकज उधास भी हैं सोनू निगम भी… तो विनोद राठौड़ भी…उषा खन्ना की शादी फिल्म मेकर सावन कुमार टाक से हुई… सावन कुमार की ज़्यादातर फिल्मों में उषा खन्ना ने म्यूज़िक दिया… शादी हालांकि सफल नहीं रही लेकिन एक निर्माता-निर्देशक औऱ म्यूजिक कंपोजर की इस जोड़ी ने कई फिल्मों में बेहतरीन गाने दिए।

उषा खन्ना जब मुंबई आईं, उस वक्त उनसे पूछा गया… कि क्या वो लता या आशा की तरह गा सकती हैं… उषा ने बेहद ईमानदारी से जवाब दिया… नहीं… हालांकि उषा का खुद का कंपोज किया हुआ म्यूजिक बहुत पसंद किया गया। शायद यही वो पल था जब उन्होंने तय कर लिया कि गायकी से आगे संगीत में उन्हें अपने लिए जमीन तलाशनी होगी… लेकिन जब जब उन्होंने गाया वो दिल को भा गया…उषा खन्ना ने न सिर्फ उभरते हुए गायकों को मौका दिया बल्कि उनके संगीत निर्देशन में एक कैमरापर्सन ने भी गाने गाए। फिल्म थी लैला… निर्देशक सावन कुमार… ये आईडिया भी उन्हीं का था… लेकिन उषा खन्ना ने जिस तरह मन मोहन सिंह से गाना गवाया… वो वाकई तारीफ के काबिल था।
बदलते वक्त के साथ उषा खन्ना एक संगीतकार के तौर पर और निखरती गईं, उन्होंने नए दौर के संगीत को अपनाया जरूर लेकिन अपने संगीत की रूह को कभी खोने नहीं दिया।बेशक उषा खन्ना को सही मायने में वो पहचान नहीं मिली जिसकी वो हकदार हैं लेकिन कई फिल्मों में उन्होंने बेजोड़ काम किया…उस दौर के हर बड़े गायक के साथ उषा खन्ना ने यादगार संगीत की रचना की।
शोर-गुल से दूर उषा खन्ना का संगीत सुनने वालों को आज भी उतना ही सुकून देता है।

gulzar sahab हैप्पी बर्थडे सचिन