मीना कुमारी की एक्टिंग… हर फिल्म की जान हुआ करती थीं…साहिब बीबी और गुलाम, पाकीजा, मेरे अपने, बैजू बावरा, दिल अपना प्रीत पराई जैसी कई हिट फिल्मों की नायिका थीं मीना कुमारी…एक ऐसी अभिनेत्री…जिसकी खूबसूरती की तारीफ करने के लिए शब्द कम पड़ जाएं,,,लेकिन मीना कुमारी की जिंदगी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है…जब मीना कुमारी पैदा हुईं तो उनके परिवार में कोई खुशी नहीं मनाई गई. मीना कुमारी के पिता को बेटे की उम्मीद थी लेकिन पैदा हुई मीना यानी कि महजबीं बानो…महजबीं बानो वक्त औऱ किस्मत से लड़कर उन्होंने खुद को वो सितारा बनाया जिसे हर कोई छुना चहाता था
घर की माली हालत ठीक नहीं थी इसलिए कम उम्र में ही काम करना पड़ा और महज 5 साल से ही वो काम करने लग गई…1939 में फिल्म लेदर फेस से फिल्मी करियर की शुरुआत हुई…दरअसल पिता अली बक्श के लिए घर चला पाना मुश्किल हो रहा था, लिहाजा महज 4 साल की महजबीं को भी अपने साथ फिल्म स्टूडियो ले जाने लगे और महजबीं के खूबसूरती को देख कर डायरेक्टर विजय भट्ट ने उन्हें अपनी फिल्म लेदरफेस में कास्ट कर लिया. पहले दिन ही उन्हें 25 रुपए फीस मिली, जो उस समय काफी बड़ी रकम होती थी. ये फिल्म 1939 में रिलीज हुई, जिसके बाद घर की आर्थिक जिम्मेदारी 6 साल की महजबीं पर आ गई. महजबीं ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट 1939 में अधूरी कहानी,1940 में पूजा 1940 में ही एक ही भूल फिल्मों में काम किया…इसी दौरान महजबीं को नया नाम मिला बेबी मीना। ये नाम उन्हें डायरेक्टर विजय भट्ट ने दिया…परिवार ने मीना कुमार के बचपन को मार सा दिया…मीना को परिवार वालों ने पैसा पैदा करने वाली एक मशीन समझ लिया था। यूं कहें तो महजबीं के बचपन को मार दिया गया था…जवानी के अहसास ने भी दम तोड़ दिया…मां -बाप के बीच भी झगड़ा शुरु हो गया…मीना का दिल भी पत्थर सा हो गया…पत्थरों के साथ ही रहना शुरु कर दिया…और फिर जब पत्थर से भी बात नहीं बनी तो मीना छोटी-छोटी नज्में और कहानियां लिखने लगी..दरअसल मीना की कोई औपचारिक पढ़ाई नहीं हुई थी..लेकिन पिता बख्श को लगा कि बिना पढ़ी लिखी मीना ज्यादा पैसे नहीं कमा पाएगी… लिहाजा घऱ पर ही एक टीचर मीना को पढाने आने लगे
इसी दौरान मां बीमार हुईं और हमेशा के लिए चली गई…मीना पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। परिवार को चलाने के लिए हर तरह की फिल्म करने लगी…बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट 11 फिल्में करने के बाद 14 साल की उम्र में फिल्म मिली- बच्चों का खेल में ….इसमें मीना को लीड एक्ट्रेस बनने का मौका मिला था. इस फिल्म ने मीना को नायिका के तौर पर स्थापित कर दिया…इसी दौरान मीना को निर्देशक होमी वाडिया की फिल्म लक्ष्मीनारायण मिली..इस फिल्म में देवी लक्ष्मी का किरदार मिला…इसके बाद तो मीना को धार्मिक फिल्में ही मिलने लगी…हालांकि इनमें भी हनुमान, पाताल विजय, गणेश महिमा फिल्मों ने खूब लोकप्रियता बटोरी..होमी वाडिया के साथ मीना की आखिरी फिल्म थी अलादीन और जादुई चिराग …इस फिल्म के लिए मीना को 10 हजार रुपए दिए गए ….ये साल 1950 की बात है
इसी समय हिन्दी सिनेमा में अशोक कुमार और देविका रानी की जोड़ी का जादू चल रहा था। अशोक कुमार ने फिल्म तमाशा के लिए मीना कुमारी को रोल ऑफर किया..जिसे मीना कुमारी ने् स्वीकार कर लिया।उस दौर में एक डायरेक्टर हुआ करते थे कमाल अमरोही…जिन्होंने पुकार जैसी फिल्में बॉलीवुड को दी थी। आपको बता दें कि जब मीना 8 साल की थी या कहें बेबी मीना थी तो कमाल अमरोही साहब ने एक रोल ऑफर किया था जिसे मीना कुमारी के पिता ने खारिज कर दिया था..लिहाजा मीना के मन में कमाल की छवि कायम थी
इसी समय एक फिल्म आई थी महल ..जिसके डायरेक्टर थे कमाल अमरोही…इस फिल्म को लेकर कमाल की काफी तारीफ हो रही थी…और फिर मीना भी कमाल पर फिदा हो गईं..कहते हैं कि मीना कमाल की तस्वीर की पूजा करने लगी। और मन ही मन मनाती—काश एक बार कमाल से मुलाकात हो जाए। और सचमुच एक दिन तो सचमुच चमत्कार हो गया। कमाल अमरोही के सेक्रेटरी बाकर अली आए और पूछा कि – कमाल साहब अनारकली फिल्म बना रहे हैं आप काम करेंगी? मीना ने तुरंत हामी भर दी…
फिल्म अनारकली मिलने के बाद मीना कुमारी अपनी बहन के साथ मुंबई के करीब महाबलेश्वर से लौट रही थीं.. रास्ते में उनकी कार का जोरदार एक्सीडेंट हुआ जिसमें मीना का एक हाथ बुरी तरह घायल हो गया…हाथ को काटने तक की नौबत आ गई लेकिन हाथ बच गया पर उनकी दो अंगुलियां काटनी पड़ीं…अपने पूरे करियर में मीना कुमारी ने किसी फिल्म में दर्शकों को पता नहीं लगने दिया कि उनकी दो अंगुलियां नहीं हैं…वो खुद को ऐसे कैरी करती थीं और इतनी खूबसूरती से मूव करती थीं कि हाथ सामने होते हुए भी सबकुछ परफेक्ट लगता था
मीना जब अस्पताल में भर्ती थे तब कमाल अमरोही उनसे मिलने अस्पताल गए..कमाल रोजाना उनसे मिलने जाया करते थे और जब पाबंदिया होती थीं, तो दोनों एक-दूसरे को खत लिखते थे.करीब 4 महीनों के इस सिलसिले में दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ी और 14 फरवरी 1952 को दोनों ने गुपचुप तरीके से निकाह कर लिया, इस समय मीना महज 18 और कमाल 34 साल के थे.कुछ दिनों के बाद शादी की बात पिता अली बख्श को पता चली और फिर परिवार में बवाल मच गया..साल 1952 में ही मीना कुमारी की एक फिल्म आई बैजू बावरा…इस फिल्म ने मीना कुमारी को पहचान दिलाई. लोग मीना कुमारी के पीछे पागल हो गए थे…इस फिल्म के बाद मीना कुमारी… पीछे मुड़कर नहीं देखी..मीना शोहरत की बुलंदियों पर थी..लेकिन मीना खुश नहीं थी..उस समय दोस्त. रिश्तेदार. घर-परिवार के लोग चाहते थे कि मीना- कमाल से तलाक ले ले।
कहते हैं कि महबूब खान की फिल्म अमर को लेकर पिता के साथ मीना कुमारी की कुछ बाता बाती हुई और फिर इसी को लेकर पिता का घऱ छोड़ना पड़ा और कमाल अमरोही के साथ रहने चली गई। मीना ने पिता को खत लिखा कि
बाबूजी,
मैं आपका घऱ छोड़ आई हूं। मरे कपड़े और किताबें वहां है। जब सहूलियत हो तो भिजवा देना। मैं अपनी कार आपको कल तक भेज दूंगी, आपको आने-जाने में दिक्कत नहीं होगी..आपसे हाथ जोड़कर एक ही विनती है कि आप कमाल को अपना दामाद मान लीजिए और तलाक की बात मन से निकाल दीजिए। कमाल आपको सलाम कहते है
आपकी प्यारी बेटी
मीना अब खूब काम कर रही थी..दाना पानी, नौलखा हार , और दायरा ने मीना को नए मकां पर पहुंचाया। कहते हैं दायरा फिल्म ..कमाल अमरोही और मीना कुमारी के प्रेम कहानी पर आधारित फिल्म थी। इसी दौरान फुटपाथ और परिणीता फिल्मों ने मीना को सफलता के शिखर पर ला ख़ड़ा कर दिया।
सबकुछ अच्छा चल रहा था…कमाल की पहली पत्नी से बेटी रुखसार अमरोही उन दिनों की बातें याद करते हुईं कहती हैं कि मीना ने सबको अपना बना लिया था,,फिर आया साल 1955। मीना कुमारी अपने दौर की सबसे ज्यादा फीस लेने वाली एक्ट्रेस बन गई थी…लेकिन मीना की लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि ऊंची फीस के बावजूद प्रोड्यूसर्स उनके घर के बाहर लाइन लगाते थे…अमर वाणी, बंदिश, शतरंज, रुखसाना, अदल -ए जहांगीर, मेमसाहब, और आजाद जैसी फिल्में की
आजाद फिल्म ने काफी लोकप्रियता हासिल की। आजाद में मीना के साथ हीरो दिलीप कुमार थे। ये मीना कुमारी की पहली फिल्म थी जिसकी शूटिंग दक्षिण भारत में हुई थी
आजाद की शूटिंग के दौरान ही इस जोड़े मसलन कमाल अमरोही और मीना कुमारी को किसी की नज़र लग गई।आजाद की शूटिंग से या कहें दक्षिण भारत से जब ये लोग शूटिंग से लौटे तब सबकुछ सही नहीं रहा।एक तरफ मीना की फिल्म हिट हो रही थी और दूसरी तरफ पारिवारिक जिंदगी तबाह। छोटी बहू के लिए 1963 में मीना कुमारी को लगातार तीसरी बार फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला ..ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड था। एक आर मजेदार बात देखिए कि इसी साल सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए तीन फिल्मों को नॉमिनेट किया गया था..फिल्में थी – साहब बीबी और गुलाम, मैं चुप रहूंगी, और आरती। और इस तीनों फिल्मों की नायिका थी मीना कुमारी
अवॉर्ड तो मिला..लेकिन पारिवारिक तनाव जिंदगी पर भारी था। कहते हैं कि तनाव और नींद ना होने की वजह से जब मीना में डॉक्टर से दिखाया तो उन्होंने दवा के तौर पर ब्रांडी की छोटी सी ड्रिंग लेने की सलाह दी और फिर यहीं से ब्रांडी जिंदगी में कुछ इस तरह से दाखिल हुई कि सारी जिंदगी ही तबाह हो गई..इस तनाव भऱे दौर में भी मीना हिट फिल्में देती रही।लेकिन इसी समय इस रिश्ते में और तल्खी आ गई और मीना ने कमाल अमरोही साहब का घर भी छोड़ दिया। यूं कहें तो मीना कुमारी और कमाल साहब के रास्ते अलग हो चुके थे..जैसा कि आपको पहले बताया था कि मीना ना़ज़ के नाम से शेरो -शायरी लिखती थीं…एक बार फिर उन्होंने लिखना शुरू किया। मीना की शायरी में दर्द औऱ तन्हाई साफ दिखता था
कमाल से अलग होने के बाद मीना के कई सारे नज्म लिखे.,..यूं कहें तो जिंदगी के दर्द को शायरी में बयां किया..मीना कुमारी के शायरी को संगीत के जरिए आवाज दी
अब सब कुछ खो सा गया था.. सब कुछ बिखर गया था…जिंदगी में कुछ पल बेहतरीन आए थे और फिर एक बार जिंदगी ने दगा दे दिया।लेकिन भारतीय सिनेमा के लिए ये खुशगवार रहा कि दोनों एक साथ फिर आए और फिल्म बनी पाकीजा..
पाकीजा फिल्म को लेकर मीना कुमारी और कमाल अमरोही के बीच बात अंदाज फिल्म के दौरान ही हुई थी .. 1956 में पाकीजा का मुहूर्त हुआ था… लेकिन अलगाव की वजह से फिल्म की शूटिंग रुक गई थी…लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर इस फिल्म की शूटिंग शुरू हुई। पहले इस फिल्म को ब्लैक एंड व्हाउृट बनाना था लेकिन फिर इसे कलर बनाया गया…दरअसल पाकीजा में कमाल का सबकुछ दांव पर लगा था..कमाल ने एक बार फिर मीना को खत लिखा
प्रिय मंजू,
तुमने कहा है कि मैं तलाक नहीं दूंगा तो तुम पाकीजा पूरी नहीं करूंगीअब मैं तुम्हें विवाह के बंधन से मुक्त करता हूं।
अब तुम पर है तुम पाकीजा अपनी पाकीजा पूरी करो। ये मेरी प्रार्थना है क्योंकि कई जिंदगियां इस पर दांव लगीं है। पाकीजा अब डूबता जहाज है ,तुम ही इसे किनारा लगा सकती हो
तुम्हारा चंदन
एक तरफ कामयाबी, दूसरी तरफ अकेलेपन का अहसास..मीना को शराब पी रही थी..डिप्रेेशन की शिकार हो गईं थी.ना सोने का ठिकाना था ना खाने का….डॉक्टर ने कहा कि- मीना जी आप ब्रांडी की पूरी बोतल पी रहे हैं…आप ज्यादा दिन जी नहीं पाएंगी..इस पर मीना ने कहा था
अब जी लिए शाह साहब। किसके लिए है ये जिंदगी।अब मैं जीना नहीं चाहती। मुझे विदा कर दीजिए, अकेले पन का जहर सबसे ज्यादा जहरीला होता है इसे वही समझता है जिसने इस जहर को पिया हो और जिया हो। आप नहीं समझेंगे
खैर मीना को इलाज के लिए बाहर ले जाया गया और फिर वो कुछ ठीक होकर भारत लौंटी। कहते हैं कि लंदन से विदा होते वक्त डॉक्टर ने शऱाब ना पीने की सख्त चेतावनी दी थी। और कहा था कि जिस दिन मरना हो शराब पी लेना
खैर हम आपको एक बार फिर पाकीजा की तरफ ले कर जा रहे हैं…खय्याम साहब, नरगिस और सुनील दत्त ने मीना को मनाया और पाकीजा की शूटिंग फिर शुरु हुई… लेकिन पहले फिल्म में अशोक कुमार थे लेकिन अब उनकी जगह राजकुमार आ गए थे…काफी मशक्कत के बाद ये फिल्म तैयार हुई और क्या शानदार बनी.. मीना की मौत के बाद पाकीजा ने इतिहास रच दिया…मीना की जिंदगी काफी दर्द भरी रही जिसकी वजह से उन्हें ट्रेजिडी क्वीन कहा जाने लगा. ‘पाकीजा’ के रिलीज होने के तीन हफ्ते बाद, मीना कुमारी गंभीर रूप से बीमार हो गईं. और फिर 31 मार्च 1972 को ट्रैजडी क्वीन ने इस दुनिया से विदा ले ली…