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बॉलीवुड को अपने शब्दों की गुलसितां को गुलजार करने वाले शख्स

सम्पूर्ण सिंह कालरा… जी हाँ शायद आप इस नाम से परिचित नहीं होंगे,लेकिन ये ही तो वो शख्स हैं जिसने बॉलीवुड को अपने शब्दों की गुलसितां को गुलजार किया है
एक ऐसी शख्सियत और सम्पूर्णता जिसे बयान करते करते शायद शब्द कम पड़ जाए…इस कवि,गीतकार, लेखक और डायरेक्टर के शब्द कभी कम नहीं हुए
इनकी कलम से लिखे गए शब्दों की गंभीरता और खूबसूरती ने ऐसे बॉलीवुड को गुलज़ार किया जैसा शायद ही किसी और लेखक ने किया हो..गुलजार जो भी लिखते हैं वो लोगों के दिलों में बस जाता है…चाहे वो रोमांटिक गाने हो…या फिलॉसिकल गाने…या फिर बच्चों के लिए …सब के लिए बेहतरीन गीत लिखे…गुड्डी फिल्म का ये गाना ..हमको मन की शक्ति देना ..कई स्कूल की प्रार्थना में आज भी गाया जाता है…लिहाजा इस बात से कोई हैरानी भी नहीं  है  गुलज़ार ने आज तक फिल्म्फेयर के बेस्ट lyricist के सबसे ज्यादा अवार्ड और बेस्ट डायलॉग के सबसे ज्यादा  अवार्ड अपने नाम किये हैं

गुलज़ार साहब ने बॉलीवुड में अपना पहला गीत 1963  में आई फिल्म बंदिनी के लिए लिखा…ये एकलौता गीत था जो कि गुलज़ार ने लिखा था इस फिल्म के लिए बाकी गीत शैलेन्द्र ने लिखे थे और शैलेन्द्र ने ही गुलज़ार को ये गीत लिखने के लिए कहा था..बंदिनी के बाद गुलजार साहब बिमल दा के अगली फिल्म काबुलीवाला में असिस्टेंट हो गए। यही वजह है कि गुलजार साहब…आज भी बिमल दा को याद करते हुए कहते हैं कि वे हमारे गार्जियन थे, गुरु थे

 

गुलजार, गीतकारऔर फिल्म निर्देशक

इस गीत से बॉलीवुड में पहचान तो मिली गुलज़ार को लेकिन उनहें बेस्ट lyricist ka पहला फिल्म फेयर अवार्ड मिला 15 साल बाद 1978 में आई फिल्म  घरोंदा के लिए
इसके बाद 1980 में गुलज़ार को ये अवार्ड मिला फिल्म गोलमाल के लिए…इस फिल्म मैं संगीत दिया था आर डी बर्मन ने।।। जिनके साथ गुलज़ार ने कई फिल्में क… ये बॉलीवुड की बेहद ज़बरदस्त जोड़ी थी..गुलज़ार साहब ने लगभग सभी म्यूजिक डायरेक्टर्स के साथ काम किया है।1981 में एक बार फिर गुलज़ार को बेस्ट गीतकार का फिल्म्फेयेर अवार्ड मिला,  खय्याम के संगीत से सजी फिल्म थोड़ी सी बेवफाई के गीत के लिए… 1984 में आई फिल्म मासूम में एक बार फिर आर डी बर्मन और गुलज़ार की जोड़ी ने ऐसा जादू किया की सभी दीवाने  हो गए।  गुलज़ार को इस गाने के लिए अवार्ड मिला


गुलजार ऐसे गीतकार थे जिनके साथ पचंम दा को सबसे अधिक मजा आता था. इसका कारण ये बिल्कूल भी नहीं था कि गुलजार सरल और सीधे गाने लिखा करते थे,,,,पंचम दा की गीतकार गुलजार से गहरी दोस्ती थी. उनके गीत लिखने के तरीको को पंचम दा हमेशा चुनौती के तौर पर लिया करते थे. कहते हैं कि एक बार गीतकार गुलजार अपनी फिल्म इजाज़त का गीत मेरा कुछ सामान का गीत लिखकर पंचम दा के पास पहुंचे और कहा कि पंचम इस गीत पर धुन बनाएं. पूरा गीत पढ़ने के बाद पंचम दा ने गुलजार की तरफ देखा और कहा कि कल को न्यूज पेपर की हेडिंग लेकर आ जाओगे और कहोगे धुन बना दो. ऐसा नहीं होता है.  बाद में आरडी बर्मन ने इस गीत की धुन बनाई और इस गीत के लिए आशा भोंसले को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला…गुलजार के गहरे दोस्त बन गए थे पंचम। गुलजार ने  पंचम को अपनी जिंदगा का हिस्सा मान लिया था..दोनों ने साथ मिलकर शानदार काम किया। दोनों ने साथ मिलकर परिचय, आंधी, खुशबू, घर, किनारा, गोलमाल, खूबसूरत, बसेरा, इजाजत, और जीवा जैसी फिल्मों में काम किया। गुलजार नें पंचम दा और आशा भोंसले के साथ मिलकर 14 गानों का एक एलबम भी बनाया। इस एलबम का नाम था दिल पड़ोसी है..जो काफी सफल रहा..1991 में एक बार फिर यारा सिली सिली गाने को लेकर गुलज़ार को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर  और नेशनल अवार्ड मिला


गाना किसी भी जेनरेशन का हो… गुलज़ार को सबसे खूबसूरत शब्द मिल ही जाते और यही वजह है कि उनकी झोली में अवार्ड्स ॉ गिरते चले गए। फिर चाहे बात 1999 मैं आयी फिल्म दिल से की छैंया-छैंया हो या फिर 2003 की फिल्म साथिया का टाइटल सॉन्ग हो
2006 में जहाँ कजरा रे के लिए गुलज़ार को एक बार फिर बेस्ट गीतकार का अवार्ड मिला तो वहीँ इसी केटेगरी में उनके दो और गाने थे धीरे जलना और चुप चुप के, चुप चुप के …. यानि वर्चस्व हो तो ऐसा!   हैरानी होती है की 89 की उम्र में भी गुलज़ार जवां दिलो के गीत लिखते है और समय के साथ उन्होंने खुद को उसी जनरेशन की आवाज़ बना दिया … दो हज़ार ग्यारह में दिल तो बच्चा है जी गीत के लिए और दो हज़ार तेरेह में भी उन्हें जब तक है जान के झल्ला गीत के लिए बेस्ट गीतकार का अवार्ड मिला

गुलजार ने ना केवल गीत लिखे बल्कि कई शानदार फिल्मों का निर्देशन भी किया है …निर्देशक का सफर  फिल्म मेरे अपने से हुई…इस फिल्म में ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी ने भी काम किया था। बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्म काफी सफल रही…इसके बाद गुलजार के निर्देशन में एक से बढ़कर एक फिल्में आई। जैसे कोशिश, अचानक, परिचय, खुशबू, आंधी, मौसम, किनारा, अंगूर, नमकीन, लेकिन, इजाजत, माचिस, हू-तू-त और मीरा…स्लमडॉग मिलेनियर के गाने ..जय हो के लिए उन्हें ऑस्कर सम्मान के साथ साथ ग्रैमी अवॉर्ड भी मिल चुका है ,गुलजार साहब की बात हो और मिर्जा गालिब की बात ना हो ये भला कैसे हो सकता है..गालिब को दूरदर्शन के जरिए उन्होंने लोकप्रिय बना दिया..इन सबके अलावा गुलजार ने लिबास नाम से एक फिल्म का लेखन और निर्देशन किया , जिसे भी काफी पसंद किया गया। हालांकि ये फिल्म भारत में रीलीज नहीं हुई। गुलजार ने अभिनेत्री राखी के साथ शादी की..इन दोनों की एक बेटी है मेघना गुलजार..जिन्हें गुलजार साहब बोसिकी कहकर बुलाते हैं..मेघना गुलजार भी एक कामयाब डायरेक्टर हैं..मेघना ने अपने पिता गुलजार पर एक किताब भी लिखी है ..जिसका नाम बिकाउज ही इज है…गुलजार साहब को कई  नेशनल अवॉर्ड्स, साहित्य अकादमी अवॉर्ड , पद्म भूषण, के साथ साथ सिनेमा का सर्वोच्च दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिल चुका है। टीम खबरटॉप टॉकीज़

 

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