जब के एल सहगल गाते हैं कितना नाजुक है दिल …तो दर्द आंखों का रास्ता अख्तियार कर लेता है…तलत साहब जब शाम ए गम की कसम गाते हैं तो एक खुमारी सी छाने लगती है…किशोर दा जब मधुबाला से अपने पांच रुपए 12 आना का हिसाब करते हैं तो दिल एक अनजान शरारत से भर उठता है…उदित नारायण जब स्कीन पर पहली बार आमिर खान को आवाज देते हैं तो नई जनरेशन के उम्मीद की बात सामने आती है…अलग अलग वक्त में…अलग अलग मूड के…अलग अलग अर्थों वाले इन गानों में आखिर वो क्या है कॉमन है…जिसने आज तक हर दिल में इनकी याद को ताजा रखा है…तो जनाब वो कॉमन चीज है वो कलम जिसने इन सब नग्मों को अल्फाज दिए…और वो कलमकार है मजरूह सुल्तानपुरी…
सुल्तानपुर में एक हेड कॉन्सटेबल के घर पैदा हुए थे मजरूह साहब…थोड़ा बड़े हुए तो मदसरे तालीम के लिए जाने लगे…लेकिन शौक लग गया फुटबॉल का…और इसी फुटबॉल के नशे में उनके खिलाफ पहला फतवा जारी कर दिया गया मदरसे से निकाल दिए गए… फिर जुनून पैदा हुआ हकीमी ज्ञान लेने का…लिहाजा यूनानी चिकित्सा के कोर्स में दाखिला ले लिया…बाद में फैजाबाद के पास टांडा में हकीम दावाखान खोला और प्रैक्टिस भी शुरू कर दी…लोगों की नब्ज देखते और इलाज करते…लेकिन यहीं मजरूह साहब के दिल की धड़कन वहां के तहसीलदार की बेटी के लिए धड़कने लगी…लेकिन न प्यार परवान चढ़ा और ना ही मजरूह साहब को उनकी मोहब्बत मिल पाई…हां इस दौर में उनका इश्क शायरी से जरूर हो गया…बीतते वक्त के साथ कलम की रौशनी यूं चमकी की मुलाकात अपने जमाने के मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी से हो गई.
मजरूह साहब ने अपना गुरू जिगर मुरादाबादी को ही माना..उन्होंने एक बार जिक्र किया था कि 1941 में जिगर साहब ने मुझे सुना ,उन्होंने मुझे दो बातें बताई, एक ये कि अगर किसी का अच्छा शेर सुनो तो कभी नकल मत करो और दूसरा ये कि जो तुम्हारा अनुभव हो, जो आप अपनी रुह से महसूस करो वही कहो और वही लिखो। हजरत और जिगर मुरादाबादी मेरे लिए संगे मिल की हैसियत रखते हैं। मिसरों पर इस्लाह कभी नहीं दी अलबत्ता मेरी तब ए शायराना की इस्लाह में उनका बहुत बड़ा हाथ हैजिगर साहब से प्रेरित होकर मजरूह साहब ने मुंबई का रुख किया और फिर यहीं के होकर रह गए..फिल्म शाहजहां में ही जब ये गाना आता थिएटर में पब्लिक की आंखों से आंसू निकलने लगते…
ये गाना इस कदर मकबूल हुआ कि मजरूह साहब और उनकी किस्मत पहली ही फिल्म से खुल गई…लेकिन अभी सबसे बड़ी शोहरत बाकी थी…जब दिल ही टूट गया गाने के बार में …इस गाने को गाने के बाद कुंदनलाल सहगल ने कहा कि उनके निधन पर उनकी अर्थी के साथ ये ही गाना बजाया जाए…किसी भी गीतकार के लिए इससे बड़ा सम्मान शायद नहीं हो सकता है…वक्त आया 1947 का…देश आजाद हुआ लेकिन मजरूह साहब गिरफ्तार कर लिए गए……सरकार के खिलाफ लिखने के चक्कर में…2 साल मुबई के जेल में रहे…लेकिन छूटे तो फिर नया सफर शुरू हुआ…
एक किस्सा है 1969 में रिलीज हुई फिल्म धरती कहे पुकार के एक गाने से जुड़ा हुआ… इस फिल्म को डायरेक्ट किया था दुलाल गुहा साहब ने और संगीत दिया था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का।कहते हैं कि धरती कहे पुकार फिल्म के लिए एक डुएट सॉन्ग लिखना था। फिल्म के प्रोड्यूसर को ये गाना थोड़ा जल्दी चाहिए था। फिल्म के संगाीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को भी जल्दी थी। लिहाजा फिल्म को प्रोड्यूसर दीनानाथ जी पहुंच गए मजरूह साहब के पास । दीनानाथ जी ने मजरूह सुल्तानपुरी जी से कहा कि मुझे गाना आज ही चाहिए और अभी ही चाहिए…ये सुनकर मजरूह साहब बोले मियां गाना अभी तो नहीं मिल सकता । अभी तो मैं नहीं लिख पाऊंगा। लेकिन प्रोड्यूसर साहब ने कहा गाना तो आज ही चाहिए। थोड़ा अर्जेन्ट है…लक्ष्मीकांत-प्यारोलाल जी स्टूडियो में ही बैठे हुए हैं और वे आपका इंतज़ार कर रहे हैं। गाना किसी भी हाल में आज ही चाहिए। इतना सुनते ही मजरूह साहब खफ़ा हो गए , और गुस्से में उठकर चले गए गाना लिखने के लिए स्टूडियो पहुंचे । लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल भी समझ गए थे कि मजरूह साहब का मूड खराब है…खैर मजरूह साहब ने गुस्से में ही गाना लिख दिया…गाने के बोल थे.. हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से…और ये गाना काफी लोकप्रिय रहा
मजरूह साहब की कलम में जितना आकर्षण था…उनकी किस्मत संगीतकारों के लिए उतनी ही नसीबदार…आर डी बर्मन के लिए भी मजरूह साहब ने शानदार गाने लिखे…लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की कई हिट फिल्मों में गानों के अल्फाज भी मजरूह साहब के थे..राजेश रौशन ने अपनी पहली कामयाबी तब पाई जब गाने मजरूह साहब ने लिखे…आनंद मिलिंद का संगीत भी तभी हिट हुआ जब गानों के बोल मजरूह साहब की कलम से निकले…जतिन ललित का म्यूजिक भी उन्ही बोलों पर सुपर हिट हुआ जिसको रौशनाई दी थी मजरूह साहब ने…वो साल 1993 का था जब फिल्मी दुनिया के किसी गीतकार को पहली बार दादा साहब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया…मजरूह साहब 24 मई 2000 को दुनिया से रुखसत हो गए…लेकिन उनके बोल…उनका अंदाज…दुनिया की इस बगिया में हमेशा कली बन कर महकता रहेगा…