पिछली सदी के साठ के दशक में सदाबहार धुनों के एक बड़े संगीतकार
बिहार से ताल्लुक रखने वाले चित्रगुप्त श्रीवास्तव उर्फ़ ‘चित्रगुप्त’ का नाम बड़े संगीतकारों की ज़मात शामिल है
चित्रगुप्त ने बाक़ायदा पण्डित शिवप्रसाद त्रिपाठी से संगीत की शिक्षा ली थी और भातखण्डे संगीत विद्यालय, लखनऊ से संगीत के नोट्स मंगाकर रियाज़ किया करते थे..
चित्रगुप्त प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने हिंदी, भोजपुरी, मगही, गुजराती और पंजाबी फिल्मों में 1,500 से अधिक गाने लिखे। एक अद्भुत हारमोनियम वादक होने के अलावा उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, पश्चिमी संगीत और उनकी बारीकियां सीखी थीं।
चित्रगुप्त का जन्म 16 नवंबर, 1917 को बिहार के गोपालगंज जिले में हुआ था और उन्होंने हिंदी और भोजपुरी दोनों फिल्मों में शानदार प्रदर्शन किया। पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम. ए. रहे चित्रगुप्त ने बम्बई की मायानगरी में आने के बाद भी अपनी संगीत की शिक्षा जारी रखी थी.
चित्रगुप्त हिंदी फिल्म उद्योग में पार्श्वगायक बनने के लिए बंबई आए थे। उनकी मुलाकात कुछ संगीत निर्देशकों से हुई जिन्होंने उन्हें एक मौका देने का वादा किया, लेकिन यह आसान रास्ता नहीं था।{ GFX IN} कहते हैं कि एक रिकॉर्डिंग सत्र के दौरान, वह गलियारे में रिकॉर्डिंग स्टूडियो स्थापित होने का इंतजार कर रहे थे। चित्रगुप्त एक कोने में अकेले खड़े थे, तभी एक शर्मीला और मासूम सा दिखने वाला युवक उनके पास आया और उनका परिचय पूछा। चित्रगुप्त ने कहा, “मैं बिहार से चित्रगुप्त श्रीवास्तव हूं।” अब चित्रगुप्त की बारी थी युवक से उनका परिचय पूछने की। “आप कैसे हैं?” चित्रगुप्त ने पूछा. युवक ने जवाब दिया, “मैं कोटला सुल्तान सिंह, मजीठा, जिला अमृतसर, पंजाब से हूं और मेरा नाम मोहम्मद रफी है।” दोनों कोरस गायक अंततः सफल हो गए; एक मशहूर संगीत निर्देशक और दूसरा महान गायक!{ GFX OUT}
खैर इनके फ़िल्मों का संगीत इतना कालजयी बन पड़ा है कि एक आम रसिक या संगीत-प्रेमी के स्मरण में तो वे गीत आज भी ज़िंदा हैं…ये बात और है कि सिनेमा की दुनिया में उन्हें ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड की फ़िल्मों के संगीतकार के रूप में ही याद किया जाता है
चित्रगुप्त की फिल्मों में – ‘तूफ़ान क्वीन’, ‘इलेवन ओ क्लॉक’, ‘भक्त पुंडलिक’, ‘नीलमणि’, ‘साक्षी गोपाल’, ‘कल हमारा है’, ‘नाचे नागिन बाजे बीन’, ‘पुलिस डिटेक्टिव’, ‘चाँद मेरे आ जा’, ‘अपलम चपलम’, ‘सुहाग सिन्दूर’, ‘ज़बक’, ‘रामू दादा’, ‘रोड’, ‘बैंड मास्टर’ और ‘सैमसन’ जैसी दर्ज़नों फ़िल्में शामिल हैं.
उनके रचे हुए अमर गीतों में प्रमुख रूप से ‘लागी छूटे ना अब तो सनम’ , ‘दगाबाज़ हो बांके पिया’ , ‘एक बात है कहने की आँखों से कहने दो’ , ‘आ जा रे मेरे प्यार के राही’ ‘दिल का दिया जला के गया’ जैसे गीत प्रमुख हैं
इतना ही नहीं ‘तेरी दुनिया से दूर चले हो के मज़बूर’ , ‘जय-जय हे जगदम्बे माता’ , ‘ये पर्वतों के दायरे ये शाम का धुआं’ ‘दीवाने तुम दीवाने हम’, ‘खिंचे-खिंचे से नज़र से नज़र चुराए हुए’ एवं ‘चल उड़ जा रे पंछी’ जैसे कर्णप्रिय गीत बरबस याद आते हैं.
चित्रगुप्त को पूरे करियर में केवल एक ही बड़े बैनर, एवीएम प्रोडक्शन, मद्रास ने उन्हें बतौर संगीतकार साइन किया….. जिसके लिए चित्रगुप्त ने ‘शिव भक्त’, ‘मैं चुप रहूँगी’ और ‘भाभी’ का संगीत रचा.
चित्रगुप्त का एक अलग महत्वपूर्ण मुक़ाम उन अत्यंत सुरीले गीतों की वजह से भी बनता है जो उन्होंने भोजपुरी फ़िल्मों के लिए संगीतबद्ध किए.
उनकी उल्लेखनीय भोजपुरी फ़िल्में ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’, ‘लागी नाहीं छूटे राम’, ‘भौजी’ और ‘गंगा’ हैं. उनकी इस तरह की फ़िल्मों में एक विशेष प्रकार का लोक-तत्व दिखता है जिसका इस्तेमाल उन्होंने कई बार हिन्दी फ़िल्मों के गीतों में छाया की तरह किया है.
हम जब भी लता मंगेशकर की संगीत-यात्रा की चर्चा करेंगे तो वहाँ नौशाद, सी रामचन्द्र, शंकर-जयकिशन, हेमन्त कुमार, एसडी बर्मन, रोशन, मदन मोहन एवं लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के बनाये हुए गीतों को ही मूल्यांकन का आधार बनाते हैं पर सच्चाई यह भी है कि इस फ़ेहरिस्त में चित्रगुप्त को शामिल किये बग़ैर लता दीदी की चर्चा अधूरी मानी जाएगी। चित्रगुप्त के बिना लता की संगीत यात्रा अधूरी रहेगी कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा..
लता सुर गाथा किताब में लताजी उनसे जुड़े एक दिलचस्प क़िस्से को याद करती है{ GFX IN} चित्रगुप्त एक दिन लंगड़ा कर चल रहे थे. लताजी ने उनसे पूछा कि क्या उनके पैर में दिक्कत है तो उन्होंने कहा कि वे टूटी हुई चप्पल पहनकर आये हैं. इस पर लताजी बोलीं, ‘चलिए, आपके लिए नयी चप्पल ले आते हैं.’ चित्रगुप्त झेंपते हुए बोले, ‘ये चप्पल मेरे लिए शुभ है. जिस दिन इसे पहनकर आते हैं, रिकॉर्डिंग अच्छी होती है.’ लताजी ज़ोर से हंसने लगीं. उन्होंने कहा, ‘चित्रगुप्तजी को अपनी चप्पल पर यकीन है, हमारे गाने पर नहीं!{ GFX OUT}
सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. नरेंद्र नाथ पांडे ने चित्रगुप्त को लेकर एक शोध किया था और बेहद जानकारीपूर्ण जीवनी दो भागों में लिखी है: ‘चल उड़ जा रे पंछी….डॉ पांडे के मुताबिक चित्रगुप्त के लिए लगभग 60 गायकों ने गाना गाया। इनमें मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर उनके सबसे करीब थे। रफी ने चित्रगुप्त के लिए 250 से अधिक गाने गाए जिनमें से 110 से अधिक एकल थे
…लता ने चित्रगुप्त के लिए 230 से अधिक गाने गाए जिनमें से 150 से अधिक एकल गीत थे। रफ़ी ने कव्वाली, भजन और शास्त्रीय गीतों के अलावा चित्रगुप्त के लिए कुछ खूबसूरत ग़ज़लें भी गाईं।
वहीं गीतकारों की बात करें तो चित्रगुप्त ने 50 से अधिक गीतकारों के साथ काम किया। इनमें से किसी एक को चुनना मुश्किल है. हालाँकि, तीन गीतकार – राजेंद्र कृष्ण, प्रेम धवन और मजरूह सुल्तानपुरी – जीवन भर उनके करीब रहे। मजरूह ने उनके लिए सर्वाधिक गीत (150 से अधिक) लिखे, उनके बाद प्रेम धवन थे। राजेंद्र कृष्ण ने 1957 से फिल्म भाभी में चित्रगुप्त के लिए गीत लिखे। उन्होंने ‘बरखा’, ‘पतंग’, ‘मैं चुप रहूंगी’ फिल्मों के लिए भी लिखा। प्रेम धवन चित्रगुप्त के पसंदीदा गीतकार होने के साथ-साथ व्यक्तिगत रूप से भी उनके बहुत करीब थे।
साल 1988 में चित्रगुप्त ने आख़िरी बार किसी फ़िल्म में संगीत दिया था. इत्तेफाक देखिए कि उसी साल उनके बेटों की जोड़ी आनंद-मिलिंद ने ‘क़यामत से क़यामत तक’ में संगीत देकर दुनिया में तहलका मचा दिया. पिता की साधना सफल हो गई थी. उनके पुत्रों ने कई फ़िल्मों में यादगार संगीत दिया है